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________________ www.vitragvani.com 116] [सम्यग्दर्शन : भाग-5 सम्यग्दर्शन : उस सम्बन्धी मुमुक्षुओं का घोलन [३] सम्यग्दर्शन होने से पहले और होने के बाद जीव का वर्तन तथा विचारधारा किस प्रकार की होती है? इस सम्बन्धी दो निबन्ध आपने पढ़े। यह तीसरा निबन्ध है। इन निबन्धों द्वारा सम्यक्त्व भावना का घोलन करते हुए प्रत्येक जिज्ञासु को प्रसन्नता होगी। रजकण तेरे भटकेंगे जैसे भटकती रेत नरभव फिर से नहीं मिले चेत चेत जीव चेत! अनन्त काल से कभी महाभाग्य के उदय से इस जीव को मनुष्यपना प्राप्त होता है और उसमें भी उत्तम कुल तथा जैनधर्म के संस्कार प्राप्त होना अत्यन्त दुर्लभ है। यह सब प्राप्त होने के पश्चात् भी जीव को किसी आत्मज्ञानी सन्त-गुरु का समागम प्राप्त हो तो वह वास्तव में सोने में सुगन्ध मिलने जैसा उत्तम योग होता है। तत्पश्चात् ऐसे सत् समागम द्वारा सिंचित धर्म संस्कार से जीव को ऐसा होता है कि अरे! यह मनुष्यगति और उत्तम जैनधर्म का सुयोग प्राप्त हुआ, उसका सदुपयोग यदि आत्महितार्थ नहीं कर लूँ तो इस देह के रजकण पृथक् पड़कर हवा में उड़ती रेत की तरह बिखर जायेंगे - वापस फिर से ऐसा मनुष्य अवतार कौन जाने कब मिलेगा! यदि आत्मा की दरकार बिना यह अवसर गँवाया तो फिर पछताने का पार नहीं रहेगा और दुःखी होकर चौरासी के अवतार में भटकना पड़ेगा। इसलिए हे जीव! तू चेत! और सावधान हो!! तुझे समझ करने का अवसर आ पहुँचा है। प्रमाद तज और मिथ्यात्वरूपी भ्रम को तोड़कर आत्मा को पहिचान। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007772
Book TitleSamyag Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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