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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
इस प्रकार सुरति मुनिराज तथा भव्यसेन मुनि को तो प्रत्यक्ष देखकर परीक्षा की। अब रेवती रानी को आचार्य महाराज ने धर्मवृद्धि का आशीर्वाद भेजा है, इसलिए उनकी भी परीक्षा करूँ - ऐसा राजा को विचार आया।
दूसरे दिन मथुरा नगरी के उद्यान में अचानक साक्षात् ब्रह्माजी पधारे हैं। नगरजनों की भीड़ उनके दर्शन को उमड़ पड़ी तथा समस्त नगर में चर्चा होने लगी कि अहा, सृष्टि का सर्जन करने वाले ब्रह्माजी साक्षात् पधारे हैं। वे कहते हैं कि - मैं इस सृष्टि का सर्जक हूँ और दर्शन देने आया हूँ। ___ मूढ़ लोगों का तो कहना ही क्या? अधिकांश लोग उन ब्रह्माजी के दर्शन कर आये। प्रसिद्ध भव्यसेन मुनि भी कौतूहलवश वहाँ हो आये, सिर्फ न गए सुरतिमुनि और न गई रेवतीरानी।
जब राजा ने साक्षात् ब्रह्मा की बात की, तब महारानी रेवती ने निःशङ्करूप से कहा – महाराज! यह ब्रह्मा हो नहीं सकते, किसी मायाचारी ने यह इन्द्रजाल रचा है, क्योंकि कोई ब्रह्मा इस सृष्टि के सर्जक हैं ही नहीं। ब्रह्मा तो अपना ज्ञानस्वरूप आत्मा है अथवा भरतक्षेत्र में भगवान ऋषभदेव ने मोक्षमार्ग की रचना की है, इसलिए उन्हें ब्रह्मा कहा जाता है; इसके अतिरिक्त कोई ब्रह्मा नहीं है, जिसको मैं वन्दन करूँ।
दूसरा दिन हुआ... और मथुरा नगरी में दूसरे दरवाजे पर नाग शैय्यासहित साक्षात् विष्णु भगवान पधारे, जिन्हें अनेक शृंगार और चार हाथों में शस्त्र थे। लोगों में तो फिर हलचल मच गयी, बिना विचारे लोग दौड़ने लगे और कहने लगे कि अहा! मथुरा-नगरी
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