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[ सम्यग्दर्शन : भाग-4
और दूसरों को उपदेश देकर समझाना आ जाये - यह ज्ञानचेतना का फल है ?
– तो ज्ञानी कहते हैं कि नहीं; ज्ञानचेतना का फल तो यह है कि अपने आत्मा को चेत ले; आत्मा को स्वसंवेदन प्रत्यक्ष कर ले- ऐसा उस ज्ञानचेतना का फल है । ज्ञानचेतना के फल में शास्त्र के अर्थ हल करना आवे - ऐसा कोई उसका फल नहीं है परन्तु आत्मा के अनुभव का हल पा जाये - ऐसी ज्ञानचेतना है । वह ज्ञानचेतना तो अन्तर में अपने आनन्दस्वरूप आत्मा को चेतती है (यह न्याय विशेष समझनेयोग्य है ) ।
ज्ञानचेतना का कार्य अन्दर में आता है, बाहर में नहीं । कोई जीव शास्त्रों के अर्थ को शीघ्रता से बोलता हो, इसीलिए उसे ज्ञानचेतना उघड़ गयी है- ऐसा उसका माप नहीं है, क्योंकि किसी जीव को भाषा का योग न हो और कदाचित् वैसा पर की ओर का विशेष उघाड़ भी न हो, तथापि अन्दर ज्ञानचेतना होती है और कदाचित् किसी को वैसा विशेष उघाड़ हो तो भी वह कोई ज्ञान चेतना की निशानी नहीं है; ज्ञानचेतना का कार्य तो अन्तर की अनुभूति में है । जिसने ज्ञान को अन्दर में झुकाकर राग से भिन्न स्वरूप को अनुभव में ले लिया है, उस जीव को अपूर्व ज्ञानचेतना अन्दर में खिल गयी है। जीवों को उसकी पहिचान होना कठिन है ।
भाई ! तुझे जन्म-मरण के दुःख मिटाना हो और आत्मा का सुख चाहिए हो तो ध्यान के विषयरूप ऐसे तेरे शुद्धस्वभाव को अनुभव में ले। उस अनुभव में आनन्दसहित ज्ञानचेतना खिल उठेगी; बाहर के पठन द्वारा ज्ञानचेतना नहीं खिलती। अन्दर ज्ञान
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