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[सम्यग्दर्शन : भाग-3
आत्मा को साधने की विधि मुमुक्षु का मङ्गल अभिप्राय
दर्शन-ज्ञान-चारित्र द्वारा आत्मा की आराधना से ही (आत्मा की) सिद्धि होती है, इसके अतिरिक्त दूसरे प्रकार से सिद्धि नहीं होती; इसलिए दर्शन-ज्ञान-चारित्र से आत्मा की उपासना करना, यह मोक्षार्थी जीव का प्रयोजन है। चैतन्य की प्राप्ति करना ही जिसका मङ्गल अभिप्राय है - ऐसा मोक्षार्थी जीव, मुक्ति के लिए प्रथम तो ज्ञानस्वरूप आत्मा की पहचान करके उसकी श्रद्धा करता है। यह चेतनस्वरूप आत्मा ही मैं हूँ और इसके सेवन से पूर्ण सुखरूप मोक्ष की प्राप्ति होगी - ऐसी निःशङ्क श्रद्धापूर्वक उसमें लीनता हो सकती है। ___जो शिष्य, मोक्ष की झङ्कार बजाता हुआ आया है, वह मङ्गल
अभिप्रायवाला शिष्य सर्व प्रकार से प्रयत्नपूर्वक आत्मा को जानता है, श्रद्धा करता है और फिर उसमें स्थिरता का उद्यम करता है; उसे छूटने की बात ही रुचिकर लगती है। श्रवण में, मनन में, शास्त्र-पठन में सर्वत्र वह छूटकारे की बात ही खोजता है। ___ पहली बात तो यह है कि आत्मा को जानना चाहिए। जहाँ वास्तविक ज्ञान किया, वहाँ ऐसा आत्मा मैं' - ऐसी निःशङ्क श्रद्धा भी हुई। ऐसी श्रद्धा-ज्ञान करनेवाले को राग का अभिप्राय नहीं है, संसार का अभिप्राय नहीं है; एकमात्र चैतन्य की प्राप्ति का ही मङ्गल अभिप्राय है, बन्धन से छूटने का ही अभिप्राय है। जिस प्रकार धन की प्राप्ति का अभिलाषी, राजा को पहचान
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