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________________ www.vitragvani.com 48] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 नाश होता है। समस्त तीर्थङ्कर भगवन्त और मुनिवर इसी एक उपाय से मोह का अभाव करके मुक्ति को प्राप्त हुए हैं... और वाणी द्वारा जगत् को भी इस एक ही मार्ग का उपदेश दिया है। यह एक ही मार्ग है; दूसरा मार्ग नहीं है - ऐसा पहले कहा था। श्री प्रवचनसार की 86 वीं गाथा में कहा है कि सम्यक् प्रकार से श्रुत के अभ्यास से, उसमें क्रीड़ा करने पर, उसके संस्कार से विशिष्ट ज्ञान-संवेदन की शक्तिरूप सम्प्रदा प्रगट करने से, आनन्द के उद्भवसहित भावश्रुतज्ञान द्वारा वस्तुस्वरूप जानने से, मोह का नाश होता है। इस प्रकार भावज्ञान के अवलम्बन द्वारा दृढ़ परिणाम से द्रव्यश्रुत का सम्यक् अभ्यास, वह मोहक्षय का उपाय है। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि पूर्व कथित उपाय और यहाँ कहा गया उपाय अलग-अलग प्रकार के हैं । वस्तुत: वे अलग-अलग दो उपाय नहीं हैं, एक ही प्रकार का उपाय है; उसे मात्र अलग -अलग शैली से समझाया है। __ अरहन्तदेव का स्वरूप पहचानने में आगम का अभ्यास आ ही जाता है क्योंकि आगम के बिना अरहन्त का स्वरूप कहाँ से जाना? और सम्यक् द्रव्यश्रुत का अभ्यास करने में भी सर्वज्ञ की पहचान साथ ही आती है क्योंकि आगम के मूल प्रणेता तो सर्वज्ञ अरहन्तदेव हैं, उनकी पहचान के बिना आगम की पहचान नहीं होती। अब, इस प्रकार अरहन्त की पहचान द्वारा अथवा आगम के सम्यक् अभ्यास द्वारा जब स्वसन्मुखज्ञान से आत्मा के स्वरूप का निर्णय करे, तब ही मोह का नाश होता है। इसलिए दोनों शैलियों में मोह के नाश का मूल उपाय तो यही है कि शुद्धचेतना से व्याप्त Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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