SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com निवेदन स...म्य...ग्द...श...न! कैसा आह्लादकारी है ! अपने जीवन का यह महान कर्तव्य है... इसका नाम सुनते ही आत्मार्थी को भक्ति से रोमांच उल्लसित हो जाता है। सत्य ही है-अपनी प्रिय में प्रिय वस्तु देखकर किसे हर्ष नहीं होगा! हजारों शास्त्रों में हजारों श्लोकों द्वारा जिसकी अचिन्त्य महिमा का वर्णन किया है-ऐसे सम्यग्दर्शन की क्या बात ! - ऐसा सम्यग्दर्शन साक्षात् देखने को मिले तो कैसी आनन्द की बात! इस काल में गुरुदेव के प्रताप से ऐसा सम्यग्दर्शन साक्षात् देखने को मिलता है क्योंकि भावनिक्षेप से सम्यक्परिणत जीव वे स्वयं ही सम्यग्दर्शन हैं। इसलिए ऐसे समकिती जीव वे स्वयं ही सम्यग्दर्शन हैं। इसलिए ऐसे समकिती जीवों का दर्शन वह साक्षात् सम्यग्दर्शन का ही दर्शन है उनकी उपासना वह सम्यग्दर्शन की ही उपासना है, उनका विनय-बहुमानभक्ति वह सम्यक्त्व का ही विनय-बहुमान-भक्ति है। अपने सौभाग्य से अपने को अभी सम्यक्त्व के आराधक जीवों की सत्संगति का और उनकी उपासना का सुअवसर प्राप्त हुआ है । पूज्य गुरुदेव, भव्य जीवों को सम्यग्दर्शन का स्वरूप समझा रहे हैं। आपश्री की मंगलकारी चरणछाया में रहकर सम्यग्दर्शन की परम महिमा का श्रवण और उसकी प्राप्ति के उपाय का श्रवण-मन्थन करना वह मानव जीवन की कृतार्थता है। गुरुदेव अपने कल्याणकारी उपदेश द्वारा सम्यग्दर्शन का जो स्वरूप समझा रहे हैं, उसी के एक अल्प अंश का इस पुस्तक में संग्रह किया है। __संसार में मनुष्यपना दुर्लभ है परन्तु सम्यग्दर्शन तो उससे भी अनन्त दुर्लभ है। मनुष्यपना प्राप्त करके भी सम्यक्त्वहीन जीव वापस संसार में ही भटकता है... परन्तु सम्यग्दर्शन तो ऐसी चीज है कि एक क्षण भी Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy