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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] आचार्य भगवान ने मोक्षमार्ग खुल्ला करके समझाया... शान्तरस का समुद्र दिखलाया... वह समझकर चैतन्य के शान्तरस के समुद्र में निमग्न हुआ शिष्य, अपना प्रमोद प्रसिद्ध करते हुए कहता है अहो! इस ज्ञानसमुद्र भगवान आत्मा, विभ्रमरूप आड़ी चादर को समूलतया दूर करके स्वयं सर्वांग प्रगट हुआ है; इसलिए अब समस्त लोक उसके शान्तरस में एक साथ ही मग्न होओ। यह शान्तरस सम्पूर्ण लोकपर्यन्त उछल रहा है। [213 देखो, यह आमन्त्रण ! शान्तरस में निमग्न होने का आमन्त्रण कौन नहीं स्वीकारेगा ? चैतन्य के असंख्य प्रदेश में शान्तरस का समुद्र उल्लसित हो रहा है, वह आचार्य भगवान ने दिखलाया.... उसमें कौन डुबकी नहीं मारेगा ! यहाँ तो कहते हैं कि पूरा जगत आकर इस शान्तरस में डुबकी लगाओ। I आहा...हा...! ऐसा भगवान आत्मा का शान्तरस ! ऐसे भगवान आत्मा का अद्भुत स्वभाव देखकर धर्मात्मा का भाव उछल गया है । अहो ! आत्मा का ऐसा शान्तरस समस्त जीव प्राप्त करो। सभी जीव आओ! ज्वाजल्यमान अंगारे जैसे विकार में से बाहर निकलकर इस शान्तरस में मग्न होओ... अत्यन्त मग्न होओ... जरा भी बाकी रखना नहीं। यह शान्तरस थोड़ा नहीं परन्तु सम्पूर्ण लोक में उछल रहा है... शान्तरस का अपार समुद्र भरा है, उसमें लीन होने के लिए ढिंढोरा पीटकर सम्पूर्ण जगत को आमन्त्रण है। अपने भाव में जो रुचा है, उसका दूसरों को भी आमन्त्रण देते हैं। कितने ही श्रावक, साधर्मियों को जिमाते हैं, उसमें कितनों के ही ऐसे भाव होते हैं कि कोई भी साधर्मी रह जाना नहीं चाहिए... Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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