SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [201 तुझे तेरा चैतन्य जीवन सफल करना हो-सच्चा सुखी जीवन जीना हो तो राग को तेरे चैतन्य घर में आने नहीं देना... तेरे चैतन्य को राग से पृथक् ही रखना। ज्ञान में भिन्न ज्ञेयरूप से रागादि ज्ञात होते हैं, वह तो ज्ञान का चेतकपना प्रसिद्ध करते हैं । वे कहीं ज्ञान को रागरूप प्रसिद्ध नहीं करते और ज्ञान भी उस राग को रागरूप ही जानता है, उसे स्वपने (ज्ञानपने) नहीं जानता। ज्ञान ऐसा जानता है कि यह जो जाननेवाला है, वह मैं हूँ और यह रागरूप जो ज्ञात होता है, वह मैं नहीं; वह बन्धभाव है। उस बन्धभाव में चेतकपना नहीं है, मेरे चेतकपने में वह ज्ञेयरूप से ज्ञात होता है; इस प्रकार ज्ञेय-ज्ञायकपने का निकट सम्बन्ध होने पर भी, राग को और ज्ञान को एकता नहीं परन्तु भिन्नता है। स्पष्ट लक्षण के भेद से उन्हें पृथक जानते ही अपूर्व भेदज्ञान होकर ज्ञान, राग से भिन्न पड़ जाता है - ऐसा राग से पृथक् परिणमता ज्ञान ही मोक्ष का साधन है। जहाँ ज्ञान और राग दोनों भिन्न-भिन्न जाने, वहाँ उनकी एकता का भ्रम नहीं रहता, अर्थात् ज्ञान, राग में एकतारूप बन्धभाव से प्रवर्तित नहीं होता परन्तु राग से भिन्न मोक्षभाव से परिणमता है। इससे ऐसे पवित्र ज्ञान को आचार्यदेव ने भगवती प्रज्ञा' कहकर उसका बहुमान किया है, वही वास्तव में मोक्ष का साधन है। मोक्ष के साधन की ऐसी मीमांसा कौन करे? कि जो जीव, मोक्षार्थी हो, जिसे संसार का रस उड़ गया हो, अर्थात् कषायें उपशान्त हो गयी हो और मात्र मोक्ष की ही अभिलाषा जिसके अन्तर में हो - Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy