SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 92] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 आत्मार्थी का पहला कर्तव्य - (2) चैतन्य भगवान के दर्शन के लिए आँगन कैसा हो? निश्चय अर्थात् सच्चा सम्यक्त्व किसे कहना? जो सम्यक्त्व अनन्त काल से संसार में परिभ्रमण करनेवाले अनन्त जीवों ने कभी एक सैकेण्डमात्र भी प्राप्त नहीं किया, वह सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त हो? - उसका उपाय यहाँ बतलाया जा रहा है। आत्मा का जैसा स्वभाव है, उसकी समझ करके, उसका अन्तर में घोलन करना ही सम्यग्दर्शन का उपाय है और वह प्रथम धर्म है। शरीरादि परवस्तु और विकार ही मैं हूँ - ऐसा मानकर, जीव अपने ध्रुव चैतन्यस्वभाव को चूक जाता है, उसे भगवान, मिथ्यात्व अर्थात् अधर्म कहते हैं। उस विपरीतमान्यता का अभाव करके, ध्रुव चैतन्यस्वरूप आत्मा की प्रतीति करना ही सम्यग्दर्शन है। वह सम्यग्दर्शन, कार्य है तो उसका उपाय क्या है ? यही कि स्वभाव सन्मुखता की रुचि करके उसका अन्तर्विचार करना ही सम्यग्दर्शन का उपाय है । जो शुद्ध आत्मस्वभाव की रुचि और लक्ष्य है, वही सम्यग्दर्शन का निश्चय उपाय है। श्री सर्वज्ञदेव कहते हैं कि हम ज्ञानस्वरूप आत्मा है। अन्तर्मुख होकर स्वभाव का विश्वास करके, उसमें एकाग्र होने से हमारी पूर्ण शुद्ध रागरहित केवलज्ञानदशा प्रगट हुई है। तू भी हमारे जैसा आत्मा है और तुझमें भी हमारे जितनी ही परिपूर्ण सामर्थ्य है। हमारी अवस्था में से रागादि का अभाव हो गया है क्योंकि वह Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy