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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 2
शुद्ध आत्मा के प्रति अपार उत्साह
'दशाऊँ तो करना प्रमाण .... '
इस शब्दब्रह्मस्वरूप परमागम से दर्शाये गये एकत्व - विभक्त आत्मा को प्रमाण करना; हाँ ही करना, कल्पना करना नहीं । इसका बहुमान करनेवाला भी भाग्यशाली है ।
श्री आचार्य भगवान कहते हैं कि इस समयसार के द्वारा मैं मेरे आत्मा के स्ववैभव से एकत्व - विभक्त शुद्ध आत्मा का स्वरूप दर्शाता हूँ, उसका श्रवण करनेवाले, हे श्रोताओ ! श्रवण करते हुए तुम भी एकत्व - विभक्त शुद्ध आत्मा के अतिरिक्त दूसरी बात तुम्हारे बीच में मत लाना; और मुझमें भी वह मत देखना । एकत्वविभक्त शुद्ध आत्मा ही कहना चाहता हूँ; अतः वह सुनते हुए तुम भी उसका ही लक्ष्य रखना ।
आत्मा के एकत्व-विभक्तस्वरूप का कथन करते हु बीच में कहीं विभक्ति इत्यादि का दोष आ जाये तो उस दोष को देखने में रुकना नहीं और तुम्हें व्याकरणादि न आवे तो तुम्हारे में भी उस दोष को देखना नहीं, क्योंकि मेरे लक्ष्य का जोर भाषा पर नहीं परन्तु शुद्ध आत्मा पर ही है, उसमें तो मेरी भूल होगी ही नहीं; इसलिए तुम भी, मैं जैसा शुद्ध आत्मा दर्शाना चाहता हूँ, वैसे शुद्ध आत्मा को ही लक्ष्य में रखकर उपादान - निमित्त के भाव की सन्धि करना; इसलिए मैं मेरे स्वानुभव से जैसा शुद्धात्मा कहना चाहता हूँ, वैसा शुद्धात्मा तुम भी स्वानुभव से समझ जाओगे ।
यहाँ व्याकरण इत्यादि के ज्ञान की महिमा नहीं है परन्तु जो
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