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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [21 उसकी थाह ला, विस्मयता ला! दुनिया की दरकार छोड़! दुनिया एक बार पागल कहेगी, भूत भी कहेगी ! दुनिया की अनेक प्रकार की प्रतिकूलता आवे तो भी उन्हें सहन करके, उनकी उपेक्षा करके, चैतन्य भगवान कैसा है ? उसे एक बार देखने का कौतूहल तो कर! यदि दुनिया की अनुकूलता अथवा प्रतिकूलता में रुकेगा तो अपने चैतन्य भगवान को तू नहीं देख सकेगा; इसलिए दुनिया का लक्ष्य छोड़कर, उससे अकेला हो जा। एक बार महान् कष्ट से भी तत्त्व का कौतूहली हो जा। ___जैसे, सूत और वेत का मेल नहीं खा सकता; उसी प्रकार जिसे आत्मा की पहचान करनी है, उसका और जगत् को मेल नहीं खा सकता। सम्यग्दृष्टिरूप सूत और मिथ्यादृष्टिरूप वेत का मेल नहीं खाता। आचार्यदेव कहते हैं कि हे बन्धु! तू चौरासी के कुएँ में पड़ा है, उसमें से पार होने के लिए कितने ही परीषह अथवा उपसर्ग आयें, मरण जितना कष्ट आयें तो भी उनकी दरकार छोड़कर, पुण्य-पापरूप विकारभाव का दो घड़ी पड़ोसी हो जा, तो चैतन्यदल तुझे पृथक् ज्ञात होगा। शरीरादि तथा शुभाशुभभाव - यह सब मुझसे भिन्न हैं और मैं इनसे भिन्न हूँ, पड़ोसी हूँ', इस प्रकार एक बार पड़ोसी होकर आत्मा का अनुभव कर। सच्ची समझ करके समीपवर्ती पदार्थों से मैं पृथक् जानने -देखनेवाला हूँ। शरीर, वाणी, मन - यह सब बाहर के नाटक हैं, उन्हें नाटकस्वरूप देख! तू उनका साक्षी है। स्वाभाविक अन्तरज्योति से ज्ञान की भूमिका की सत्ता में यह सब जो ज्ञात होता है, वह मैं नहीं हूँ परन्तु उनका जाननेवालामात्र मैं हूँ। इस प्रकार स्व Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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