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सम्यग्दर्शन : भाग-2]
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रहा है। संसार-भ्रमण के दु:खों में सिकता हुआ, आकुल-व्याकुल होकर हाथ-पैर मारता है। वहाँ धर्मात्मा सन्त, ज्ञानरूपी गारूढी मन्त्र द्वारा उसका जहर उतार देते हैं और उसे दु:ख से छूटने का उपाय बताते हैं। उपाय प्राप्त करके उस जीव को सन्तों के प्रति कितना उपकार आता है ! अहा नाथ! आपने मुझे जीवन दिया... अनन्त दुःख से तड़पते हुए मुझे आपने उभारा... सर्प के जहर से बचानेवाले ने तो एक बार मरण से बचाया, परन्तु हे भगवान! आपने तो मुझे अनन्त जन्म-मरण के दुःखों से बचाया है।
देखो, इस प्रकार के वास्तविक उपकार का भाव कब जगता है? जबकि सन्तों के द्वारा बताया गया मार्ग अपने आत्मा में प्रगट करे तब। ____ मोक्ष के साधक वीतरागी सन्तों ने जो मोक्ष का उपाय बताया है, वह मोक्षार्थी जीव को ही परिणमित हो सकता है। जो जीव, विषय-कषाय का और मानादिक का अर्थी हो, उसे अन्तर में मोक्ष का उपाय परिणमित नहीं होता; जो जीव मोक्षार्थी है, उसके लिए ही सन्तों का उपदेश है। समयसार, गाथा 18 में आचार्य कुन्दकुन्ददेव कहते हैं कि - जीवराज को यों जानना, फिर श्रद्धना इस रीति से। उसका ही करना अनुचरण, फिर मोक्ष अर्थी यत्न से॥८॥
मोक्षार्थी जीव को क्या करना चाहिए? यह इसमें बताया है। इसी प्रकार समयसार, कलश 185 में भी कहते हैं कि -
मोक्षार्थी इस सिद्धान्त का सेवन करें कि मैं तो सदा शुद्ध चेतन्यमय एक परम ज्योति ही हूँ और जो यह भिन्न लक्षणवाले विविध प्रकार के भाव प्रगट होते हैं, वे मैं नहीं हूँ क्योंकि वे सभी मेरे लिए परद्रव्य हैं।
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