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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [179 होनेवाला शान्तरस कहाँ से प्रगट हुआ है? अन्तरस्वभाव में शान्तरस का समुद्र भरा था, वही उल्लसित होकर प्रगट हुआ है। हे जीव! सम्यग्ज्ञान द्वारा तू भी अपनी स्वभावशक्ति को उछाल । अहो ! मेरे चिदानन्दस्वभाव में ही शान्तरस का समुद्र भरा है - ऐसा विश्वास करके, उसमें एकाग्रता करना ही शान्ति का उपाय है। ___ मेरी शान्ति और उस शान्ति का उपाय, बाह्य इन्द्रिय-विषयों में कहीं नहीं है परन्तु अन्तर में अपने अतीन्द्रियस्वरूप में ही है। इस प्रकार पहले अपने अतीन्द्रिय चेतनस्वभाव का ज्ञान से निर्णय कर। ___'मैं कौन हूँ' - ऐसे निजस्वरूप को जानने के लिए तेरे अन्तर में अतीन्द्रिय ज्ञानस्वभाव के अतिरिक्त दूसरे किसी का सहारा नहीं है। भले ही तेरे चारों ओर सन्त-मुनियों के समूह विराजमान हों तो भी तेरे अन्तरस्वभाव के आश्रय बिना तुझे शान्ति देने के लिए दूसरा कोई समर्थ नहीं है और यदि तूने अपने स्वभाव का आश्रय किया है तो फिर भले ही सारी दुनिया डूब जाए अथवा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में खलबलाहट हो जाए तो भी तेरी शान्ति को भङ्ग करने में कोई समर्थ नहीं है। इस प्रकार जगत् से भिन्न अपने अस्तित्व को जानकर और अपनी शान्ति का परिणमन अपने अन्तर-साधन के आधीन है - ऐसा भान करके जो जीव अपने अन्तर में प्रयत्न करता है, वह परमशान्तरस प्रगट करके सर्व दु:खों से मुक्त होता है। जिस प्रकार उबलता हुआ पानी खौलता रहता है, वह जरा भी शान्त नहीं रहता; इसी प्रकार इस संसार में जीव दु:खों से खौल रहा है, उसे किञ्चित् भी शान्ति नहीं है - ऐसे संसार-दुःख का जिसे अन्तर में त्रास लगता हो और किसी भी प्रकार से उनसे छूटकर Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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