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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [177 उष्णता के समय भी पानी में शीतलस्वभाव है; उसी प्रकार पर्याय में विकार के समय भी आत्मा शुद्ध निर्विकारी चैतन्यस्वभाव है - ऐसा सर्वज्ञदेव ने कहा है। प्रश्न - उस स्वभाव का निर्णय किस प्रकार होता है ? उत्तर - उस स्वभाव सन्मुखता के ध्यान से ही उसका निर्णय होता है। जिस प्रकार उष्णता के समय पानी में शीतलस्वभाव है, वह स्वभाव हाथ-पैर अथवा आँख, कान, नाक, जीभ इत्यादि इन्द्रियों से ज्ञात नहीं होता तथा आकुलता, राग-द्वेष, सङ्कल्प -विकल्प द्वारा भी उसका निर्णय नहीं होता किन्तु पानी के स्वभाव सम्बन्धी ज्ञान से ही इसका निर्णय होता है; इसी प्रकार आत्मा की पर्याय में विकार वर्तता होने पर भी सर्वज्ञदेव ने आत्मा का स्वरूप शुद्धचैतन्यस्वभावी कहा है और वैसा ही ज्ञानियों ने अनुभव किया है; उस शुद्ध स्वभाव का निर्णय इन्द्रियों से अथवा मन के सङ्कल्प -विकल्पों से नहीं होता, अपितु ज्ञान को अन्तर में विस्तृत करके उस स्वभाव का निर्णय होता है। ज्ञान को अन्तर में झुकाते ही स्वभाव को स्पर्शकर ऐसा निर्णय होता है कि अहा! मेरा स्वभाव आकुलता और आतापरहित परम शान्त है, क्षणिक आकुलता मेरा परमस्वरूप नहीं है, मेरा परमस्वरूप तो आनन्द से उल्लसित है। अरे! जीवों का लक्ष्य बाहर में दौड़ता है परन्तु अन्तर में स्व तरफ लक्ष्य नहीं जाता; इसलिए अपनी महिमा भाषित नहीं होकर पर की ही महिमा भाषित होती है। सिद्ध भगवन्त कैसे महान् ! अरहन्त भगवन् महान् ! सन्त-मुनिवर और धर्मात्मा महान् !! इस प्रकार उनकी महिमा गाता है परन्तु हे भाई! जिसकी महिमा तू रात-दिन गाता है, वह तू स्वयं ही है, क्योंकि सन्त कहते हैं कि Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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