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सम्यग्दर्शन : भाग-2]
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वह कैसा मीठा लगेगा? अरे! सुखी रोटियाँ मिले तो भी मीठी लगती हैं... और अत्यन्त हर्ष से अपनी क्षुधा मिटाता है। ___ इसी प्रकार जिस जीव को आत्मा की लगन लगी है, भूख लगी है। अरे! अनादिकाल से संसार में भ्रमण करते हुए मुझे आत्मा ने कहीं सुख प्राप्त नहीं किया, एकान्त दुःख ही पाया है। अब, दुःख से छूटकर मेरा आत्मा सुखी कैसे हो? इस प्रकार सुख के उपाय के लिये छटपटाता है; वह जीव, ज्ञानी सन्त के समीप जाकर दीनरूप से भिखारी की तरह याचक होकर विनय से माँगता है - हे प्रभु! मुझे अपनी आत्मा के सुख का मार्ग बतलाओ। इस भव दुःख से छूटने का मार्ग मुझे समझाओ। इस प्रकार जो आत्मा का गरजवान होकर आया है और उसे आत्मा के आनन्द की बात सुनने को प्राप्त हो तो वह कैसी मीठी लगेगी ! उस समय वह दूसरे किसी लक्ष्य में नहीं रुकेगा, अपितु एक ही लक्ष्य से आत्मा का स्वरूप समझकर अपना दु:ख मिटायेगा।
जो वास्तव में आत्मा का अर्थी होकर सुनता है, उसे श्रवण होते ही देशना अन्तर में परिणत हो जाती है। जैसे, जिसे कड़क भूख लगी हो, उसे भोजन पेट में पड़ते ही (तृप्तिरूप) परिणमित हो जाता है। इसी प्रकार जिसे चैतन्य की वास्तविक अभिलाषा जागृत हुई है, उसे वाणी कान में पड़ते ही आत्मा में परिणमित हो जाती है। ___ जिस प्रकार तृषातुर को शीतल पानी प्राप्त होते ही प्रेमपूर्वक पीता है; इसी प्रकार आत्मा के अर्थी को चैतन्य के शान्तरस का पान मिलते ही अत्यन्त रुचिपूर्वक झेलकर अन्तर में परिणमा देता
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