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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [155 से 'सम्यक् एकान्त' कहा जाता है और स्वभाव की अस्ति में विकार की नास्ति है – इस अपेक्षा से उसे ही 'सम्यक् अनेकान्त' कहा जाता है। स्वभाव की अस्ति को लक्ष्य में लिये बिना (सम्यक् एकान्त बिना) अकेली विकार की नास्ति को लक्ष्य में लेने जाये तो वहाँ 'मिथ्या एकान्त' हो जाता है, अर्थात् उसे पर्यायबुद्धि से विकार के निषेधरूप विकल्प में एकत्वबुद्धि हो जाती है परन्तु विकल्प के अभावरूप परिणमन नहीं होता। इससे आत्मस्वभाव का-एक का ही भले प्रकार अवलम्बन करना, यही विकल्प के अभावरूप परिणमन की विधि है। (चर्चा में से) तब तक आत्मा की प्रीति नहीं होती। अरे रे! मुझे कहाँ तक यह जन्म-मरण करने हैं। इस भव -भ्रमण का कहीं अन्त है या नहीं? इस प्रकार जब तक चौरासी के अवतार का भय नहीं होता, तब तक आत्मा की प्रीति नहीं होती। 'भय बिना प्रीति नहीं' अर्थात् भव-भ्रमण का भय हुए बिना, आत्मा की प्रीति नहीं होती। सच्ची समझ ही विश्राम है। अनन्त काल से संसार में परिभ्रमण करते हुए कहीं विश्राम प्राप्त नहीं हुआ है। अब सच्ची समझ करना ही आत्मा का विश्राम है। (पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी) Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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