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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [149 है। सत्पुरुष में ऐसा क्या लक्षण है कि जो दूसरों में न हो और उनमें ही हो? सत्पुरुष की आन्तरिक श्रद्धा-ज्ञान ही उनका लक्षण है; रागादि होते हैं, वह सत्पुरुष का लक्षण नहीं है। इस प्रकार लक्षण से सत्पुरुष को पहचानकर उसका चिन्तन करना चाहिए। इस प्रकार अन्तर की बात करके, अब बाह्य की बात करते हैं । सत्पुरुषों की मुखाकृति का हृदय से अवलोकन करना, उनके मन-वचन-काया की प्रत्येक चेष्टा के अद्भुत रहस्य पुनः-पुनः निरीक्षण करना।' शरीर-मन-वाणी की क्रिया तो जड़ है परन्तु उसके पीछे अनाकुलस्वभाव का श्रद्धा-ज्ञान है, उसका अद्भुत रहस्य है। मन-वचन-काया की जो प्रवृत्ति होती है, उसका कर्तापना धर्मी को मिट गया है। धर्मी को उनमें कभी सुखबुद्धि नहीं होती और कभी भेदज्ञान का अभाव नहीं होता - ऐसा ज्ञानी का अद्भुत रहस्य है, वह बारम्बार विचारणीय है। सत्पुरुष की मुखाकृति का हृदय से अवलोकन और बारम्बार उनके समागम की भावना में स्वयं को सत् समझने की रुचि है। ___ अब कहते हैं कि उनका सम्मत किया हुआ, सब सम्मत करना।' ज्ञानियों ने क्या सम्मत किया है ? आत्मा के स्वाश्रय के अतिरिक्त तीन काल में धर्म नहीं है अर्थात् स्वाश्रयभाव ही ज्ञानी को सम्मत है। पर का आश्रय करना, वह ज्ञानी को सम्मत नहीं है। आत्मा का ज्ञानस्वभाव, रागरहित है; उसकी रुचि, उसकी श्रद्धा, उसका ज्ञान और उसका आश्रय करना ही ज्ञानियों को सम्मत है। इस प्रकार पहचानकर ज्ञानियों के द्वारा सम्मत किया हुआ सब सम्मत करना। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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