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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [83 अप्रतिहत होता है और श्रेणी भी अप्रतिहत होती है और यहाँ तीर्थङ्करों के साथ मिलान करना है; इसलिए तीर्थङ्करों के समान ही अप्रतिहत सम्यग्दर्शन की बात ली गयी है। मूलसूत्र में "मोहो खलु जादि तस्स लयं" कहा गया है, उसी में से यह भाव निकलता है। __ अरहन्त और अन्य आत्माओं के स्वभाव में निश्चय से कोई अन्तर नहीं है। अरिहन्त का स्वरूप अन्तिम शुद्धदशारूप है; इसलिए अरहन्त का ज्ञान करने पर समस्त आत्माओं के शुद्धस्वरूप का भी ज्ञान हो जाता है। स्वभाव से सभी आत्मा, अरहन्त के समान हैं, परन्तु पर्याय में अन्तर है। यहाँ तो सभी आत्माओं को अरहन्त के समान कहा है, अभव्य को भी अलग नहीं किया। अभव्य जीव का स्वभाव और शक्ति भी अरहन्त के समान ही है। सभी आत्माओं का स्वभाव परिपूर्ण है, किन्तु अवस्था में पूर्णता प्रगट नहीं है, यह उनके पुरुषार्थ का दोष है। वह दोष पर्याय का है, स्वभाव का नहीं । यदि स्वभाव को पहचाने तो स्वभाव के बल से पर्याय का दोष भी दूर किया जा सकता है। __भले ही जीवों की वर्तमान में अरहन्त जैसी पूर्णदशा प्रगट न हुई हो, तथापि आत्मा के द्रव्य-गुण-पर्याय की पूर्णता का स्वरूप कैसा होता है - यह स्वयं वर्तमान में निश्चित कर सकता है। जब तक अरहन्त केवली भगवान जैसी दशा नहीं होती, तब तक आत्मा का पूर्ण स्वरूप प्रगट नहीं होता। अरहन्त के पूर्ण स्वरूप का ज्ञान करने पर, सभी आत्माओं का ज्ञान होता है। सभी आत्मा अपने पूर्ण स्वरूप को पहचानकर, जब तक पूर्णदशा को प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करते, तब तक वे दुःखी रहते हैं। सभी Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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