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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [73 प्रवचनसार के दूसरे अध्याय की 65वीं गाथा में कहा है कि - 'जो अरहन्त को, सिद्ध को तथा साधु को जानता है और जिसे जीवों के प्रति अनुकम्पा है, उनके शुभरागरूप परिणाम हैं'- इस गाथा में अरहन्त के जाननेवाले के शुभराग कहा है। यहाँ मात्र विकल्प से जानने की अपेक्षा से बात है। वह जो बात है, सो शुभ विकल्प की बात है; जबकि यहाँ तो ज्ञानस्वभाव के निश्चययुक्त की बात है। अरहन्त के स्वरूप को विकल्प के द्वारा जाने, किन्तु ज्ञानस्वभाव का निश्चय न हो तो वह प्रयोजनभूत नहीं है और ज्ञानस्वभाव के निश्चय से युक्त अरहन्त की ओर का विकल्प भी राग है, उस राग की शक्ति नहीं, किन्तु जिसने निश्चय किया है, उस ज्ञान की ही अनन्त शक्ति है और वह ज्ञान ही मोहक्षय करता है, उस निर्णय करनेवाले ने केवलज्ञान की परिपूर्ण शक्ति को अपनी पर्याय की स्व-परप्रकाशक शक्ति में समाविष्ट कर लिया है। मेरे ज्ञान की पर्याय इतनी शक्ति सम्पन्न है कि निमित्त की सहायता के बिना और पर के लक्ष्य बिना केवलज्ञानी अरहन्त के द्रव्य-गुण-पर्याय को समा लेती है – निर्णय में ले लेती है। वाह! पञ्चम काल के मुनि ने केवलज्ञान के भावामत को प्रवाहित किया है। पञ्चम काल में अमृत की प्रबलधारा बहा दी है। स्वयं केवलज्ञान प्राप्त करने की तैयारी है, इसलिए आचार्य भगवान, भाव का मंथन करते हैं। वे केवलज्ञान की ओर के पुरुषार्थ की भावना के बल से कहते हैं कि मेरी पर्याय से शुद्धोपयोग के कार्यरूप में केवलज्ञान ही आन्दोलित हो रहा है। बीच में जो शभविकल्प आता है, उस विकल्प की श्रेणी को तोड़कर शुद्धोपयोग की अखण्ड श्रेणी को ही अङ्गीकार करता हूँ। केवलज्ञान का Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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