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________________ www.vitragvani.com 72] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 नहीं आ सकता; इतना जानने पर, अरहन्त के केवलज्ञान का निर्णय अपने में आ गया। वह यथार्थ निर्णय, सम्यग्दर्शन का कारण होता है। सर्वज्ञदेव ने जैसा जाना है, वैसा ही होता है, इस निर्णय में जिनेन्द्रदेव के और अपने केवलज्ञान की शक्ति की प्रतीति अन्तर्हित है। अरहन्त के समान ही अपना परिपूर्ण स्वभाव समझ में आ गया है, अब मात्र पुरुषार्थ के द्वारा उसरूप परिणमन करना ही शेष रह गया है। सम्यग्दृष्टि जीव अपने पूर्ण स्वभाव की भावना करता हुआ, अरहन्त के पूर्ण स्वभाव का विचार करता है कि - जिस जीव को जिस द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से जैसा होना श्री अरहन्तदेव ने अपने ज्ञान में जाना है, वैसा ही होगा, उसमें किञ्चित्मात्र भी अन्तर नहीं होगा - ऐसा निर्णय करनेवाले जीव ने मात्र ज्ञानस्वभाव का निर्णय किया कि वह अभिप्राय से सम्पूर्ण ज्ञाता हो गया, उसमें केवलज्ञान-सन्मुख का अनन्त पुरुषार्थ आ गया। केवलज्ञानी अरहन्त प्रभु का जैसा भाव है, वैसा अपने ज्ञान में जो जीव जानता है, वह वास्तव में अपने आत्मा को जानता है; क्योंकि अरहन्त के और इस आत्मा के स्वभाव में निश्चयतः कोई अन्तर नहीं है। अरहन्त के स्वभाव को जाननेवाला जीव, अपने वैसे स्वभाव की रुचि से यह यथार्थतया निश्चय करता है कि वह स्वयं भी अरहन्त के समान ही है। अरहन्तदेव का लक्ष्य करने में जो शुभराग है, उसकी यह बात नहीं है, किन्तु जिस ज्ञान ने अरहन्त का यथार्थ निर्णय किया है, उस ज्ञान की बात है । निर्णय करनेवाला ज्ञान, अपने स्वभाव का भी निर्णय करता है और उसका मोह, क्षय को अवश्य प्राप्त होता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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