________________
www.vitragvani.com
50]
[सम्यग्दर्शन : भाग-1
समझ में नहीं आती? तू आत्मा है या जड़ है? यदि आत्मा की समझ में यह बात नहीं आयेगी तो क्या जड़ की समझ में आयेगी? ऐसी कोई बात ही नहीं जो चैतन्य के ज्ञान में न समझी जा सकती हो; चैतन्य में सब कुछ समझने की शक्ति है। 'समझ में नहीं आ सकता' – यह बात जड़ के घर की है। जो यह कहता है कि आत्मा की बात समझ में नहीं आ सकती, उसे आत्मा के प्रति रुचि ही नहीं; परन्तु जड़ के प्रति रुचि है। मुक्ति का मार्ग एकमात्र सम्यग्ज्ञान ही है और संसार का मार्ग भी एकमात्र अज्ञान ही है।
प्रश्न – ऐसे कठिन समय में यदि आत्मा की ऐसी गहन बातों के समझने में समय लगा देंगे तो फिर अपनी आजीविका और व्यवसाय कैसे चलेगा?
उत्तर – जिसे आत्मा की रुचि नहीं है, किन्तु संयोग की रुचि है, उसी को यह प्रश्न उठता है। आजीविका इत्यादि का संयोग तो पूर्वकृत पुण्य के कारण मिलता है; उसमें वर्तमान पुरुषार्थ
और चतुराई कार्यकारी नहीं होती। आत्मा को समझने में न तो पूर्वकृत पुण्य काम में आता है और न वर्तमान पुण्य ही, किन्तु वह तो पुरुषार्थ के द्वारा अपूर्व आन्तरिक संशोधन से प्राप्त होता है, वह बाह्य संशोधन से प्राप्त नहीं हो सकता। यदि तुझे आत्मा की रुचि हो तो तू पहले यह निश्चय कर कि कोई भी परवस्तु मेरी नहीं है, परवस्तु मुझे सुख-दुःख नहीं देती, मैं पर का कुछ नहीं करता; इस प्रकार सम्पूर्ण पर की दृष्टि को छोड़कर निज को देख। अपनी पर्याय में राग हो तो उस राग के कारण भी परवस्तु नहीं मिलती, इसलिए राग निरर्थक है। ऐसी मान्यता के होने पर राग के प्रति पुरुषार्थ पंगु हो जाता है। पर की क्रिया से भिन्न जान
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.