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________________ www.vitragvani.com 46] __ [सम्यग्दर्शन : भाग-1 1. पैनी छैनी - जैसे जड़ शरीर में से विकारी रोग को निकालने के लिये पैने और सूक्ष्म चमकते हुए शस्त्रों से ऑपरेशन किया जाता है; इसी प्रकार यहाँ चैतन्य आत्मा और रागादि विकार के बीच ऑपरेशन करके उन दोनों को पृथक् करना है, उसके लिए तीक्ष्ण और तेज प्रज्ञारूपी छैनी है अर्थात् सम्यग्ज्ञानरूपी पर्याय अन्तरङ्ग में ढ़लकर स्वभाव में मग्न होती है और राग पृथक् हो जाता है, यही भेदविज्ञान है। ___2. किसी भी प्रकार - पहले तेईसवें कलश में कहा था कि तू किसी भी प्रकार-मरकर भी तत्त्व का कौतूहली हो, उसी प्रकार यहाँ भी कहते हैं कि किसी भी प्रकार, समस्त विश्व की परवाह न करके भी, सम्यग्ज्ञानरूपी प्रज्ञा-छैनी को आत्मा और बन्ध के बीच डाल। 'किसी भी प्रकार के कहने से यह बात भी उड़ा दी गई है कि कर्म इत्यादि बीच में बाधक हो सकते हैं। किसी प्रकार अर्थात् तू अपने में पुरुषार्थ करके प्रज्ञारूपी छैनी के द्वारा भेदज्ञान कर। शरीर का चाहे जो हो, किन्तु आत्मा को प्राप्त करना है - यही एक कर्तव्य है, इस प्रकार तीव्र आकांक्षा और रुचि करके सम्यग्ज्ञान को प्रगट कर । यदि बिजली के प्रकाश में सूई में डोरा डालना हो तो उसमें कितनी एकाग्रता आवश्यक होती है ! उधर बिजली चमकी कि इधर सुई में डोरा डाल दिया, इसमें एक क्षणमात्र का प्रमाद नहीं चल सकता; इसी प्रकार चैतन्य में सम्यग्ज्ञानरूपी सत् को पाने के लिए चैतन्य की एकाग्रता और तीव्र आकांक्षा होनी चाहिए। अहो! यह चैतन्य भगवान को पहिचानने का सुयोग प्राप्त हुआ है, यहाँ प्रत्येक क्षण अमूल्य है, आत्म-प्रतीति के बिना उद्धार का कहीं कोई मार्ग नहीं, Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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