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________________ www.vitragvani.com 30] [ सम्यग्दर्शन : भाग-1 सकता है। राग अनेक प्रकार का है और स्वभाव एक प्रकार का है । प्रज्ञा के द्वारा समस्त प्रकार के राग से आत्मा को भिन्न करना, वह मोक्ष का उपाय है यहाँ यह कहा गया है कि राग और आत्मा भिन्न हैं । इसका यह आशय नहीं है कि आत्मा यहाँ है और राग उससे दस फुट दूर है – इस प्रकार क्षेत्र की अपेक्षा से भिन्नता नहीं है परन्तु वास्तव भाव से भिन्नता है । रागादिक बन्धभाव, आत्मा के ऊपर ही ऊपर रहते हैं, भीतर प्रवेश नहीं करते अर्थात् क्षणिक रागभाव के होने पर भी वह त्रिकालीस्वभाव, रागरूप नहीं हुआ है; इसलिए यह कहा है कि विकार, स्वभाव के ऊपर ही ऊपर रहता है । विकार और स्वभाव को भिन्न जानने से ही मोक्ष होता है और उसके लिए प्रज्ञा ही साधन है । प्रज्ञा का अर्थ है सम्यग्ज्ञान । क्या है प्रज्ञाछैनी ? : -आत्मा का स्वभाव समयसार - स्तुति में भी कहा है कि प्रज्ञारूपी छैनी, उदय की सन्धि की छेदक होती है। ज्ञान का अर्थ है और उदय का अर्थ है— बन्धभाव। स्वभाव और बन्धभाव की समस्त सन्धियों को छेदने के लिए आत्मा की प्रज्ञारूपी छैनी ही साधन है। ज्ञान और राग दोनों एक पर्याय में वर्तमान होने पर भी, दोनों के लक्षण कभी एक नहीं हुए, दोनों अपने निज लक्षणों में भिन्न-भिन्न हैं - इस प्रकार लक्षणभेद के द्वारा उन्हें भिन्न जानकर, उनकी सूक्ष्म अन्तरसन्धि में प्रज्ञारूपी छैनी के प्रहार से वे अवश्य पृथक् हो जाते हैं । - जैसे पत्थर की सन्धि को लक्ष्य में लेकर, उस सन्धि में सुरंग लगाने से शीघ्र ही बड़े भारी धमाके के साथ टुकड़े हो जाते हैं; Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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