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________________ www.vitragvani.com [287 सम्यग्दर्शन : भाग-1] है; किन्तु 'अधर्म' नाम का स्वतन्त्र द्रव्य है। यह एक अखण्डद्रव्य है जो कि समस्त लोक में विद्यमान है। जब जीव और पुद्गल गति करके रुक जाते हैं, तब यह द्रव्य उस स्थिरता में निमित्तरूप पहिचाना जाता है। आकाश - यह एक अखण्ड सर्वव्यापक द्रव्य है। यह समस्त पदार्थों को स्थान देने में निमित्तरूप पहचाना जाता है। इस द्रव्य के जितने भाग में अन्य पाँच द्रव्य रहते हैं, उतने भाग को 'लोकाकाश' कहते हैं और जितना भाग पाँच द्रव्यों से रहित / खाली होता है, उसे अलोकाकाश कहते हैं। जो खाली स्थान कहा जाता है, उसका अर्थ मात्र आकाशद्रव्य होता है। काल - कालद्रव्य असंख्य हैं । इस लोक में असंख्य प्रदेश हैं, उस प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालद्रव्य स्थित है। जो असंख्य कालाणु हैं, वे सब एक-दूसरे से पृथक हैं। ये द्रव्य वस्तु के रूपान्तर (परिवर्तन) होने में निमित्तरूप पहचाने जाते हैं। __इन छह द्रव्यों को सर्वज्ञ के अतिरिक्त अन्य कोई भी प्रत्यक्ष नहीं जान सकता। सर्वज्ञदेव ने ही इन छह द्रव्यों को जाना है और उन्होंने उनका यथार्थ स्वरूप कहा है; इसलिए सर्वज्ञ के सत्यमार्ग के अतिरिक्त अन्य कहीं भी छह द्रव्यों का स्वरूप नहीं पाया जा सकता, क्योंकि अन्य अपूर्ण (अल्पज्ञ) जीव उन द्रव्यों को परिपूर्ण नहीं जान सकते; इसलिए छह द्रव्यों के स्वरूप को यथार्थतया समझना चाहिए। टोपी के उदाहरण से छह द्रव्यों की सिद्धि : देखा! यह वस्त्रनिर्मित टोपी, अनन्त परमाणु एकत्रित होकर बनी है और उसके कट जाने पर / छिन्न-भिन्न हो जाने पर परमाणु पृथक् हो जाते हैं; इस प्रकार एकत्रित होना और पृथक् होना Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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