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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [285 करते है; "अमुक मकान इत्यादि स्थान पर आकाश से पाताल तक हमारा अधिकार है।" इस प्रकार दस्तावेजों में लिखवाया जाता है, इससे निश्चित् हुआ कि आकाश से पातालरूप कोई एक वस्तु है। यदि आकाश से पाताल तक कोई वस्तु है ही नहीं तो कोई यह कैसे लिखा सकता है कि आकाश से पाताल तक मेरा अधिकार है ? वस्तु है इसलिए उस पर अपना अधिकार माना जाता है। आकाश से पाताल तक कहने में उस सर्वव्यापी वस्तु को 'आकाशद्रव्य' कहा जाता है। यह द्रव्य ज्ञानरहित है और अरूपी है। उसमें रूप, रस, गन्ध इत्यादि नहीं है। कालद्रव्य :___ लोग दस्तावेज में यह लिखवाते हैं कि 'यावत् चन्द्रदिवाकरौ– अर्थात् जब तक सूर्य और चन्द्रमा रहें तब तक हमारा अधिकार है।' यहाँ पर कालद्रव्य को स्वीकार किया गया है। वर्तमान मात्र के लिए ही अधिकार हो सो बात नहीं है, किन्तु अभी काल आगे बढ़ता जा रहा है, उस समस्त काल में मेरा अधिकार है। इस प्रकार कालद्रव्य को स्वीकार करते हैं। लोग कहा करते हैं कि हम और हमारा परिवार सदा फलता-फूलता रहे इसमें भी भविष्यकाल को स्वीकार किया है। यहाँ तो मात्र कालद्रव्य को सिद्ध करने के लिए फलने-फूलने की बाता है, फलते-फूलते रहने की भावना तो मिथ्यादृष्टि की ही है। लोग कहा करते हैं कि हम तो सात पीढ़ी से सुखी रहते आ रहे हैं, इसमें भी भूतकाल को स्वीकार किया है। भूत, भविष्यत और वर्तमान इत्यादि सभी प्रकार 'कालद्रव्य' की व्यवहार पर्याय हैं। यह कालद्रव्य भी अरूपी है और ज्ञानरहित है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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