SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com (धर्म की पहली भूमिका (भाग 2)) 'मिथ्यात्व' : मिथ्यात्व का अर्थ गलत या विपरीत मान्यता किया था। हमें यह नहीं देखना है कि पर में क्या यथार्थता या अयथार्थता है; किन्तु आत्मा में क्या अयथार्थता है, यह समझाकर अयथार्थता को दूर करने की बात है, क्योंकि जीव को अपनी अयथार्थता दूर करके अपने में धर्म करना है। __ मिथ्यात्व द्रव्य है, गुण है या पर्याय? इसके उत्तर में यह निश्चित कहा गया है कि मिथ्यात्व, श्रद्धागुण की एक समयमात्र की विपरीत पर्याय है। __ मिथ्यात्व, अनन्त संसार का कारण है। यह मिथ्यात्व अर्थात् सबसे बड़ी से बड़ी भूल अनादि काल से जीव स्वयं ही करता चला आया है। महापाप : इस मिथ्यात्व के कारण जीव, जीववस्तु को वैसी नहीं मानता, जैसी वह है; किन्तु विपरीत ही मानता है। इसलिए मिथ्यात्व ही वास्तव में असत्य है। इस महान असत्य के सेवन करते रहने में प्रतिक्षण स्व-हिंसा का महापाप लगता है। प्रश्न – विपरीत मान्यता / मिथ्यात्व करने से किस जीव को मारने की हिंसा का पाप लगता है ? Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy