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सम्यग्दर्शन : भाग-1] तो चैतन्यस्वभाव की हीनता प्रदर्शित होती है। मेरे चैतन्य स्वभाव को पर की अपेक्षा नहीं है। एक समय में परिपूर्ण द्रव्य ही मुझे मान्य है। (-18-1-45 के दिन व्याख्यान से, समयसार गाथा-68) मोक्ष भी द्रव्यदृष्टि के आधीन है :
जो कोई जीव एकबार भी द्रव्यदृष्टि को धारण कर लेता है, वह जीव अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है। द्रव्यदृष्टि के बिना जीव अनन्तानन्त उपाय करे तो भी मोक्ष नहीं पा सकता। श्रीमद् राजचन्द्रजी 'सम्यक्त्व की प्रतिज्ञा' के विवरण में कहते हैं कि सम्यक्त्व को ग्रहण करने से ग्रहणकर्ता की इच्छा न हो तो भी ग्रहणकर्ता को सम्यक्त्व की अतुल शक्ति की प्रेरणा से मोक्ष जबरदस्ती प्राप्त करना ही पड़ता है तथा वे आगे कहते हैं कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति बिना, जन्म-मरण के दुःख की आत्यंधिक निवृत्ति हो ही नहीं सकती; इसलिए जो मोक्ष का अभिलाषी हो, उसे अवश्य द्रव्यदृष्टि धारण करनी चाहिए। जिस जीव को द्रव्यदृष्टि प्राप्त हो गई, उसकी मुक्ति होगी ही; और जिसे यह दृष्टि प्राप्त नहीं हुई, उसकी मुक्ति हो ही नहीं सकती; इस प्रकार मोक्षप्राप्ति दृष्टि के आधीन है। ज्ञान भी दृष्टि के आधीन है :
जिस जीव को द्रव्यदृष्टि नहीं, उसका ज्ञान सच्चा नहीं है, भले ही वह जीव ग्यारह अङ्ग नौ पूर्व का ज्ञान प्राप्त कर ले, परन्तु यदि द्रव्यदृष्टि प्राप्त नहीं तो वह सर्वज्ञान मिथ्या है; और भले ही नव तत्त्वों के नाम भी न जानता हो, परन्तु यदि उसे द्रव्यदृष्टि प्राप्त है तो उसका ज्ञान सच्चा है।
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