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________________ www.vitragvani.com 238] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 प्रश्न - जब तक आत्मा का अनुभव नहीं हो, तब तक व्रत, तप इत्यादि करने से तो कल्याण होता है न? उत्तर – आत्म-प्रतीति के बिना व्रत, तपादि का शुभराग किया तो उससे क्या? वह तो राग है, जिससे आत्मा को बन्धन होता है और उससे धर्म मानने से मिथ्यात्व की पुष्टि होती है; आत्मानुभव के बिना किसी भी प्रकार सुख नहीं, धर्म नहीं और कल्याण नहीं होता। प्रश्न – यदि सम्पूर्ण सुख-सुविधायुक्त विशाल महल बनवाकर उनमें रहे, तब तो सुखी होता है न? उत्तर – यदि विशाल भवनों में रहा तो इससे क्या? क्या भवन में से आत्मा का सुख आता है? महल तो जड़-पत्थर का है, आत्मा कहीं उससे प्रविष्ट नहीं हो जाता। आत्मा तो अपनी पर्याय में विकार को भोगता है। अपने स्वभाव को भूलकर महलों में सुख माना, यही महा पराधीनता और दुःख है। उस जीव को बड़े-बड़े भवनों का बाह्य संयोग हो तो उससे आत्मा को क्या? कोई जीव, सम्यग्दर्शन के बिना त्यागी हो और व्रत अङ्गीकार करे, किन्तु उससे क्या? सम्यग्दर्शन के बिना धर्म नहीं होता। किसी जीव ने शास्त्रज्ञान के द्वारा आत्मा को जान लिया अर्थात् शास्त्रों को पढ़कर या सुनकर यह जान लिया कि मैं शुद्ध हूँ, मेरे स्वरूप में राग-द्वेष नहीं है, आत्मा, परद्रव्य से भिन्न है और पर का कुछ नहीं कर सकता, तो भी आचार्यदेव कहते हैं कि इससे क्या? यह तो पर के लक्ष्य से जानना हुआ, ऐसा ज्ञान तो अनन्त संसारी अज्ञानी जीव भी करते हैं, परन्तु स्वसन्मुख पुरुषार्थ के द्वारा Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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