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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [195 दर्शनगुण के विकसित होने पर भी, चारित्रगुण विकसित नहीं भी होता है, परन्तु ऐसा नहीं हो सकता कि चारित्रगुण विकसित हो और दर्शनगुण विकसित न हो। स्मरण रहे कि सम्यग्दर्शन के बिना कदापि सम्यक्चारित्र नहीं हो सकता। प्रश्न – जबकि श्रद्धा और चारित्र दोनों गुण स्वतन्त्र हैं, तब ऐसा क्यों होता है? उत्तर – यह सच है कि गुण स्वतन्त्र हैं, परन्तु श्रद्धागुण से चारित्रगुण उच्च प्रकार का है, श्रद्धा की अपेक्षा चारित्र में विशेष पुरुषार्थ की आवश्यकता है और श्रद्धा की अपेक्षा चारित्र विशेष पूज्य है, इसलिए पहले श्रद्धा के विकसित हए बिना चारित्रगण विकसित हो ही नहीं सकता। जिसमें श्रद्धागुण के लिये अल्प पुरुषार्थ न हो, उसमें चारित्रगुण के लिए अत्यधिक पुरुषार्थ कहाँ से हो सकता है ? पहले सम्यक्श्रद्धा को प्रगट करने का पुरुषार्थ करने के बाद, विशेष पुरुषार्थ करने पर चारित्रदशा प्रगट होती है। श्रद्धा की अपेक्षा चारित्र का पुरुषार्थ विशेष है, इसलिए पहले श्रद्धा होती है, उसके बाद चारित्र होता है। इसलिए पहले श्रद्धा प्रगट होती है और फिर चारित्र का विकास होता है। श्रद्धा की अपेक्षा चारित्र का पुरुषार्थ विशेष है, इसलिए पहले श्रद्धा होती है, उसके बाद चारित्र होता है। इसलिए पहले श्रद्धा प्रगट होती है और फिर चारित्र का विकास होता है। श्रद्धागुण की क्षायिकश्रद्धारूप पर्याय होने पर भी, ज्ञान और चारित्र में अपूर्णता होती है, इससे सिद्ध हुआ कि वस्तु में अनन्त गुण हैं और वे सब स्वतन्त्र हैं, यही गुणों में अन्यत्व/भेद है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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