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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [183 सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का सम्बन्ध किसके साथ है ? : सम्यग्दर्शन निर्विकल्प सामान्य गुण है, उसका मात्र निश्चय, अखण्ड स्वभाव के साथ ही सम्बन्ध है, अखण्ड द्रव्य जो भङ्गभेद रहित है, वही सम्यग्दर्शन को मान्य है। सम्यग्दर्शन, पर्याय को स्वीकार नहीं करता, किन्तु सम्यग्दर्शन के साथ जो सम्यग्ज्ञान रहता है, उसका सम्बन्ध निश्चय-व्यवहार दोनों के साथ है, अर्थात् निश्चय-अखण्ड स्वभाव को तथा व्यवहार में पर्याय के जो भङ्गभेद होते हैं, उन सबको सम्यग्ज्ञान जान लेता है। सम्यग्दर्शन एक निर्मल पर्याय है, किन्तु सम्यग्दर्शन स्वयं अपने को यह नहीं जानता कि मैं एक निर्मल पर्याय हूँ। सम्यग्दर्शन का एक ही विषय अखण्ड द्रव्य है; पर्याय, सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है। प्रश्न – सम्यग्दर्शन का विषय अखण्ड है और वह पर्याय को स्वीकार नहीं करता, तब फिर सम्यग्दर्शन के समय पर्याय कहाँ चली गयी? सम्यग्दर्शन स्वयं पर्याय है, क्या पर्याय द्रव्य से भिन्न हो गई? उत्तर – सम्यग्दर्शन का विषय तो अखण्ड द्रव्य ही है। सम्यग्दर्शन के विषय में द्रव्य-गुण-पर्याय का भेद नहीं है। द्रव्यगुण-पर्याय से अभिन्न वस्तु ही सम्यग्दर्शन को मान्य है (अभेद वस्तु का लक्ष्य करने पर जो निर्मलपर्याय प्रगट होती है, वह सामान्य वस्तु के साथ अभेद हो जाती है।) सम्यग्दर्शनरूप जो पर्याय है, उसे भी सम्यग्दर्शन स्वीकार नहीं करता। एक समय में Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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