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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [163 उपादान-निमित्त और कार्य-कारण : सच्चे श्रुतज्ञान के अवलम्बन के बिना और श्रुतज्ञान से ज्ञानस्वभावी आत्मा का निर्णय किये बिना, आत्मा अनुभव में नहीं आता। इसमें आत्मा का अनुभव करना, वह कार्य है। आत्मा का निर्णय, वह उपादानकारण है और श्रुत का अवलम्बन, वह निमित्त है। श्रुत के अवलम्बन से ज्ञानस्वभाव का जो निर्णय किया, उसका फल उस निर्णय के अनुसार अनुभव करना ही है। आत्मा का निर्णय, वह कारण है और आत्मा का अनुभव, वह कार्य है; इस प्रकार यहाँ कहा गया है। तात्पर्य यह है कि जो निर्णय करता है, उसे अनुभव होता ही है - ऐसी बात की है। कारण के सेवन अनुसार कार्य प्रगट होता ही है। अन्तरङ्ग-अनुभव का उपाय अर्थात् ज्ञान की क्रिया : अब, आत्मा का निर्णय करने के पश्चात् उसका प्रगट अनुभव किस प्रकार करना - यह बतलाते हैं। निर्णय के अनुसार ज्ञान का आचरण, वह अनुभव है। प्रगट अनुभव में शान्ति का वेदन लाने के लिए; अर्थात्, आत्मा की प्रगट प्रसिद्धि के लिए परपदार्थ की प्रसिद्धि के कारण को छोड़ देना चाहिए। प्रथम, मैं ज्ञानानन्दस्वरूपी आत्मा हूँ - ऐसा निश्चय करने के बाद आत्मा के आनन्द का प्रगटरूप से भोग करने के लिए; अर्थात्, वेदन करने के लिए, निर्विकल्प अनुभव करने के लिए, परपदार्थ की प्रसिद्धि के कारणभूत जो इन्द्रिय और मन के द्वारा परलक्ष्य से प्रवर्तमान ज्ञान है, उसे स्वसन्मुख करना चाहिए। देव-शास्त्र-गुरु इत्यादि परपदार्थों का लक्ष्य तथा मन के अवलम्बन से प्रवर्तमान बुद्धि; अर्थात्, मतिज्ञान Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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