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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
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श्रुतज्ञान किसे कहना चाहिए? :
'प्रथम, श्रुतज्ञान के अवलम्बन से ज्ञानस्वभावी आत्मा का निर्णय करना' – ऐसा कहा है। श्रुतज्ञान किसे कहना चाहिए? सर्वज्ञ भगवान के द्वारा कहा गया श्रुतज्ञान, अस्ति-नास्ति के द्वारा वस्तुस्वरूप सिद्ध करता है। अनेकान्तस्वरूप वस्तु को 'स्व -अपेक्षा से है और पर-अपेक्षा से नहीं है' – इस प्रकार जो स्वतन्त्र सिद्ध करता है, वह श्रुतज्ञान है। बाह्यत्याग श्रुतज्ञान का लक्षण नहीं है :
परवस्तु को छोड़ने के लिए कहे अथवा पर के प्रति राग कम करने के लिए कहे - ऐसा भगवान के द्वारा कहा गया श्रुतज्ञान का लक्षण नहीं है। प्रत्येक वस्तु अपनी अपेक्षा से है और वह वस्तु, अनन्त परद्रव्यों से पृथक् है; इस प्रकार अस्ति-नास्तिरूप परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों को प्रकाशित करके, जो वस्तुस्वरूप को बतलाता है, वह अनेकान्त है और वही श्रुतज्ञान का लक्षण है। वस्तु स्व-अपेक्षा से है और पर-अपेक्षा से नहीं है, इसमें वस्तु को स्वतः सिद्ध-ध्रुवरूप सिद्ध किया है। श्रुतज्ञान का वास्तविक लक्षण-अनेकान्त :
एक वस्तु में 'है' और 'नहीं है' - ऐसी परस्पर विरुद्ध दो शक्तियाँ भिन्न-भिन्न अपेक्षा से प्रकाश कर, वस्तु का पर से भिन्न स्वरूप बताती हैं - यही श्रुतज्ञान; अर्थात्, भगवान के द्वारा कहा गया शास्त्र है। इस प्रकार आत्मा, सर्व परद्रव्यों से पृथक् वस्तु है - ऐसा पहले श्रुतज्ञान से निश्चय करना चाहिए।
अनन्त परवस्तुओं से यह आत्मा भिन्न है, इस प्रकार सिद्ध
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