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________________ www.vitragvani.com (परम सत्य का हकार और उसका फल ) परम सत्य सुनने पर भी समझमें क्यों नहीं आता? 'मैं ज्ञायक नहीं हूँ, मैं इसे नहीं समझ सकता' – ऐसी दृष्टि ही उसे समझने में अयोग्य रखती है। सत् के एक शब्द का भी यदि अन्तर से सर्व प्रथम 'हकार' आया तो वह भविष्य में मुक्ति का कारण हो जाता है। एक को सुनते ही भीतर से बड़े ही वेग के साथ हकार आता है; और 'मैं लायक नहीं हूँ- यह मेरे लिए नहीं है' इस प्रकार की मान्यता का व्यवधान करके सुनता है, वही व्यवधान उसे समझने नहीं देता। दुनियाँ विपरीत बातें तो अनादि काल से कर ही रही है, आज इसमें नवीनता नहीं है। अन्तर्वस्तु के भान के बिना बाहर से त्यागी होकर अनन्त बार स्वर्ग गया, किन्तु अन्तर से सत् का हकार न होने से धर्म को नहीं समझ पाया। जब ज्ञानी कहते हैं कि सभी जीव सिद्ध समान हैं और तू भी सिद्धसमान है; भूल वर्तमान एक समयमात्र की है, इसे तू समझ सकेगा', इसलिए कहते हैं। तब यह जीव 'मैं इस लायक नहीं हूँ, मैं इसे नहीं समझ सकूँगा'; इस प्रकार ज्ञानियों के द्वारा कहे गए, सत् का इन्कार करके सुनता है; इसलिए उनकी समझमें नहीं आता। भूल, स्वभाव में नहीं है; केवल एक समयमात्र के लिए पर्याय में है, वह भूल-दूसरे समय में नही रहती। हाँ! यदि वह स्वयं दूसरे समय में नयी भूल करे तो बात दूसरी है (पहले समय की भूल Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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