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________________ www.vitragvani.com 128] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 श्री परमात्म प्रकाश में कहा है कि सम्यक्त्वसहित नरकवास भी अच्छा और मिथ्यात्वसहित स्वर्गवास भी बुरा है। इससे निश्चय हुआ है कि जिस भाव से नरक मिलता है, उस अशुभभाव से भी मिथ्यात्व का पाप बहुत बड़ा है, यह समझकर जीवों को सर्व प्रथम यथार्थ समझ के द्वारा मिथ्यात्व के महापाप को दूर करने का उपाय करना चाहिए। इस जगत में जीव को मिथ्यात्व के समान अहितकर्ता दूसरा कोई नहीं है और सम्यक्त्व समान उपकार करनेवाला दूसरा कोई नहीं है मनुष्यभव हारकर चला जाता है विषयों के लिए पागल होकर जिन्दगी गँवा दी और फिर मरण के समय तीव्र आर्तध्यान करता है, परन्तु उससे क्या प्राप्त हो सकता है? अरे रे! मरण के समय कदाचित् 'भगवान.... भगवान...' करे, पञ्च परमेष्ठी का स्मरण करे, परन्तु अन्तरङ्ग में सदा शरणभूत निज ज्ञायक भगवान को गुरुगम से पहचाना न हो, उसकी रुचि -प्रतीति-श्रद्धा नहीं की हो तो प्रभु-स्मरण का शुभराग भी कहाँ शरण दे सकता है ? भले ही करोड़ों रुपये इकट्ठे हुए हों, पचास-पचास लाख (आज के हिसाब से पाँच-दश करोड़) के राजमहल जैसे बँगले बनाये हों, पाँच-पाँच लाख (आज के हिसाब से पचास -पचास लाख) की कीमती मोटर गाड़ियाँ हों, नौकर-चाकर इत्यादि सब राजसी ठाट-बाट हों, परन्तु उससे क्या? यह सब वैभव छोड़कर मरण की पीड़ा से पीड़ित होकर यह अज्ञानी जीव, मनुष्यभव हारकर चला जाता है; पशु और नरकगति में परिभ्रमण करता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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