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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [123 प्रकार ज्ञान से भरे हुए चैतन्य कुएँ में पुरुषार्थरूपी गहरा कुश मारकर ताग लाओ। विस्मयता लाओ, दुनियाँ की दरकार छोड़। दुनिया एकबार तुझे पागल कहेगी, भूत भी कहेगी। दुनिया की अनेक प्रकार की प्रतिकूलता आये; तथापि उसे सहन करके, उसकी उपेक्षा करके, चैतन्य भगवान जैसा है, उसे देखने का एक बार कौतूहल तो कर! यदि दुनिया की अनुकूलता या प्रतिकूलता में रुकेगा तो अपने चैतन्य भगवान को तू नहीं देख सकेगा; इसलिए दुनिया का लक्ष्य छोड़कर, और उससे पृथक होकर एकबार महान कष्ट से भी तत्त्व का कौतूहली हो। जिस प्रकार सूत और नेतर का मेल नहीं बैठता; उसी प्रकार जिसे आत्मा की पहिचान करनी हो, उसका और जगत का मेल नहीं बैठता। सम्यकदृष्टिरूप सूत और मिथ्यादृष्टिरूप नेतर का मेल नहीं खाता। ___ आचार्यदेव कहते हैं कि बन्धु! तू चौरासी के कुएँ में पड़ा है, उसमें से पार होने के लिए चाहे जितने परीषह या उपसर्ग-मरण जितने कष्ट आयें, तथापि उनकी दरकार छोड़कर पुण्य-पापरूप विकारभावों का दो घड़ी पड़ौसी हो तो तुझे चैतन्य दल पृथक् मालूम होगा। शरीरादि तथा शुभाशुभभाव यह सब मुझसे भिन्न हैं और मैं इनसे पृथक हूँ, पड़ौसी हूँ – इस प्रकार एक बार पड़ौसी होकर आत्मा का अनुभव कर।' सच्ची समझ करके निकटस्थ पदार्थों से मैं पृथक्, ज्ञाता-दृष्टा हूँ। शरीर, वाणी, मन, वे सब बाह्य नाटक हैं, उन्हें नाटकस्वरूप से देख! तू उनका साक्षी है। स्वाभाविक अन्तरज्योति से ज्ञानभूमिका की सत्ता में यह सब जो ज्ञात होता है, वह मैं नहीं हूँ परन्तु उसका ज्ञाता जितना हूँ – ऐसा उसे जान तो सही! और उसे जानकर उसमें लीन तो हो! आत्मा में श्रद्धा, Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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