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भेद - विज्ञानी का उल्लास
जो चैतन्य का लक्षण नहीं है ऐसी समस्त बन्धभाव की वृत्तियाँ मुझसे भिन्न हैं; इस प्रकार बन्धभाव से भिन्न स्वभाव का निर्णय करने पर, चैतन्य को उस बन्धभाव की वृत्तियों का आधार नहीं रहता, अकेले आत्मा का ही आधार रहता है । ऐसे स्वाश्रयपने की स्वीकृति में चैतन्य का अनन्त वीर्य आया है ।
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अपनी प्रज्ञाशक्ति के द्वारा जिसने बन्धरहित स्वभाव का निर्णय किया, उसे स्वभाव की रुचि, उत्साह और प्रमोद आता है कि अहो! यह चैतन्यस्वभाव स्वयं भवरहित है, मैंने उसका आश्रय किया, इससे अब मेरे भव का अन्त निकट आ गया है और मुक्तिदशा की नौबत बज रही है। अपने निर्णय से जो चैतन्यस्वभाव में निःशङ्कता करे, उसे चैतन्य प्रदेशों में उल्लास होता है और अल्प में मुक्तदशा होती है।
काल
( - श्री समयसार - मोक्ष अधिकार के व्याख्यान में से )
सम्यक्त्व की दुर्लभता
काल अनादि है, जीव भी अनादि है और भव- समुद्र भी अनादि है; परन्तु अनादिकाल से भव-समुद्र में गोते खाते हुए इस जीव ने दो वस्तुयें कभी प्राप्त नहीं कीं – एक तो श्री जिनवर देव और दूसरा सम्यक्त्व।
- परमात्म प्रकाश
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