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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 उठता है । अवस्था के लक्ष्य में अटकनेवाला वीर्य और ज्ञान दोनों रागवाले हैं। जब पर्याय का लक्ष्य छोड़कर, भेद के राग को तोड़कर, अभेदस्वभाव की ओर वीर्य को लगाकर, वहाँ ज्ञान की एकाग्रता करता है, तब निष्क्रिय चिन्मात्रभाव का अनुभव होता है। यह अनुभव ही सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान है। निष्क्रिय कहने का कारण :___ यहाँ चिन्मात्रभाव को 'निष्क्रिय' कहने का कारण क्या है ? क्योंकि वहाँ परिणतिरूप क्रिया तो है, परन्तु खण्डरूप-रागरूप क्रिया का अनुभव नहीं है, कर्ता-कर्म और क्रिया का भेद नहीं है तथा कर्ता-कर्म-क्रिया सम्बन्धी विकल्प नहीं है, इस अपेक्षा से 'निष्क्रिय' कहा गया है, परन्तु अनुभव के समय अभेदरूप से परिणति तो होती रहती है। पहले जब परलक्ष्य से द्रव्य-पर्याय के बीच भेद होते थे, तब विकल्परूप क्रिया थी, किन्तु निजद्रव्य के लक्ष्य से एकाग्रता करने पर, द्रव्य-पर्याय के बीच का भेद टूटकर दोनों अभेद हो गये, इस अपेक्षा से चैतन्यभाव को निष्क्रिय कहा है। जानने के अतिरिक्त जिसकी अन्य कोई क्रिया नहीं है, ऐसे ज्ञानमात्र निष्क्रियभाव को इस गाथा में कथित उपाय के द्वारा जानकर ही जीव (सुख-शान्ति) प्राप्त कर सकता है। मोहान्धकार अवश्य नष्ट होता है।:
अभेद अनुभव के द्वारा 'चिन्मात्रभाव को प्राप्त करता है' यह बात अस्ति की अपेक्षा से कही है, अब चिन्मात्रभाव को प्राप्त करने पर 'मोहनाश को प्राप्त होता है;' इस प्रकार नास्ति की अपेक्षा से
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