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________________ www.vitragvani.com 112] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 आत्मा को जानने पर उस समय अन्तरङ्ग में क्या होता है, सो अब कहते हैं – 'केवल आत्मा को जानने पर, उसके उत्तरोत्तर क्षण में कर्ता-कर्म-क्रिया का विभाग क्षय होता जाता है; इसलिए निष्क्रिय चिन्मात्रभाव को प्राप्त होता है।' (-गाथा 80 की टीका) द्रव्य-गुण-पर्याय के भेद का लक्ष्य छोड़कर अभेद-स्वभाव की ओर झुकने पर कर्ता-कर्म-क्रिया के भेद का विभाग क्षय होता है और जीव निष्क्रिय चिन्मात्रभाव को प्राप्त होता है - यही सम्यग्दर्शन है। ___ मैं आत्मा हूँ, ज्ञान मेरा गुण है और यह मेरी पर्याय है – ऐसे भेद की क्रिया से रहित, पुण्य-पाप के विकल्प से रहित, निष्क्रिय चैतन्यभाव का अनुभव करने में अनन्त पुरुषार्थ है, अपना आत्मबल स्वोन्मुख होता है। कर्ता-कर्म-क्रिया के भेद का विभाग क्षय को प्राप्त होता है। पहले विकल्प के समय, मैं कर्ता हूँ और पर्याय मेरा कार्य है। इस प्रकार कर्ता-कर्म का भेद होता था, किन्तु जब पर्याय को द्रव्य में ही मिला दिया, तब द्रव्य और पर्याय के बीच कोई भेद नहीं रहा, अर्थात् द्रव्य कर्ता और पर्याय उसका कार्य है – ऐसे भेद का, अभेद के अनुभव के समय क्षय हो जाता है। पर्यायों को और गुणों को अभेदरूप से आत्मद्रव्य में ही समाविष्ट करके परिणामी, परिणाम और परिणति (कर्ता-कर्म और क्रिया) को अभेद में समाविष्ट करके अनुभव करना, सो अनन्त पुरुषार्थ है और यही ज्ञान का स्वभाव है। भङ्ग-भेद में जाने पर, ज्ञान और वीर्य कम होते जाते हैं और अभेद का अनुभव करने पर, उत्तरोत्तर क्षण में कर्ताकर्म-क्रिया का विभाग क्षय होता जाता है। वास्तव में तो जिस Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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