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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [103 पर्यायें एक-दूसरे से अप्रवृत्त हैं; एक पर्याय दूसरी पर्याय में नहीं आती; इसलिए पहली पर्याय के विकाररूप होने पर भी, मैं अपने स्वभाव से दूसरी पर्याय को निर्विकार कर सकता हूँ। इसका अर्थ यह है कि विकार एक समयमात्र के लिए है और विकाररहित स्वभाव त्रिकाल है। पर्याय एक समयमात्र के लिए ही होती है, यह जान लेने पर यह प्रतीति हो जाती है कि विकार क्षणिक है। इस प्रकार अरहन्त के साथ समानता करके अपने स्वरूप में उसे मिलाता है। चेतन की एक समयवर्ती पर्यायें ज्ञान की ही गाँठे हैं। पर्याय का सम्बन्ध चेतन के साथ है। वास्तव में राग, चेतन की पर्याय नहीं है; क्योंकि अरहन्त की पर्याय में राग नहीं है। जितना अरहन्त की पर्याय में होता है, उतना ही इस आत्मा की पर्याय का स्वरूप है। पर्याय प्रतिसमय की मर्यादावाली है। एक पर्याय का दूसरे समय में नाश हो जाता है; इसलिए एक अवस्था में से दूसरी अवस्था नहीं आती, किन्तु द्रव्य में से ही पर्याय आती है, इसलिए पहले द्रव्य का स्वरूप बताया है। पर्याय में जो विकार है, सो स्वरूप नहीं है; किन्तु गुण जैसी ही निर्विकार अवस्था होनी चाहिए; इसलिए बाद में गुण का स्वरूप बताया है। राग अथवा विकल्प में से पर्याय प्रगट नहीं होती, क्योंकि पर्याय एक-दूसरे में प्रवृत्त नहीं होती। पर्याय को चिद्विवर्तन की ग्रन्थी क्यों कहा है ? पर्याय स्वयं तो एक समयमात्र के लिए है, परन्तु एक समय की पर्याय में त्रैकालिक द्रव्य को जानने की शक्ति है। एक समय की पर्याय में त्रैकालिक द्रव्य का निर्णय समाविष्ट हो जाता है। पर्याय की ऐसी शक्ति बताने के लिए उसे चिद्विवर्तन की ग्रन्थी कहा है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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