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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [95 जीव का मोह अवश्य क्षय को प्राप्त होता है - ऐसा कहा है, किन्तु यह नहीं कहा कि मोहकर्म का बल कम हो तो आत्मा को जानने का पुरुषार्थ प्रगट हो सकता है, क्योंकि मोहकर्म कहीं आत्मा को पुरुषार्थ करने से नहीं रोकता। जब जीव अपने ज्ञान में सच्चा पुरुषार्थ करता है, तब मोह अवश्य क्षय हो जाता है। जीव का पुरुषार्थ स्वतन्त्र है, 'पहले तू ज्ञान कर तो मोह क्षय को प्राप्त हो,' इसमें उपादान से कार्य का होना सिद्ध किया है, किन्तु 'पहले मोह क्षय हो तो तुझे आत्मा का ज्ञान प्रगट हो' इस प्रकार निमित्त की ओर से विपरीत को नहीं लिया है, क्योंकि निमित्त को लेकर जीव में कुछ भी नहीं होता। अब यह बतलाते हैं कि अरहन्त भगवान के स्वरूप में द्रव्यगुण-पर्याय किस प्रकार है। वहाँ अन्वय द्रव्य है, अन्वय का विशेषण गुण है, अन्वय के व्यतिरेक (भेद) पर्याय हैं।' (गाथा 80 टीका) शरीर, अरहन्त नहीं है किन्तु द्रव्य-गुण -पर्याय -स्वरूप आत्मा, अरहन्त है। अनन्त अरहन्त और अनन्त आत्माओं का द्रव्य-गुण-पर्याय से क्या स्वरूप है, यह इसमें बताया है। -द्रव्ययहाँ मुख्यता से अरहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय की बात है। अरहन्त भगवान के स्वरूप में जो अन्वय है, सो द्रव्य है 'जो अन्वय है, सो द्रव्य है' इसका क्या अर्थ है? जो अवस्था बदलती है, वह कुछ स्थिर रहकर बदलती है। जैसे पानी में लहरें उठती हैं, वे पानी और शीतलता को स्थिर रखकर उठती हैं; पानी के बिना यों ही लहरें नहीं उठने लगतीं, इसी प्रकार आत्मा में Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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