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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [89 यदि उनके द्रव्य-गुण-पर्याय के स्वरूप को न समझे तो वह अरहन्त के स्वरूप की स्तुति नहीं कहलायेगी। क्षेत्र की अपेक्षा से निकट में अरहन्त की उपस्थिति हो या न हो, इसके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, किन्तु अपने ज्ञान में उनके स्वरूप का निर्णय है या नहीं -इसी के साथ सम्बन्ध है। क्षेत्रापेक्षा से निकट में ही अरहन्त भगवान विराजमान हों, परन्तु उस समय यदि ज्ञान के द्वारा स्वयं उनके स्वरूप का निर्णय न करे तो उस जीव को आत्मा ज्ञात नहीं हो सकता और उसके लिए तो अरहन्त बहुत दूर हैं; और वर्तमान में क्षेत्र की अपेक्षा से अरहन्त भगवान निकट नहीं हैं; तथापि यदि अपने ज्ञान के द्वारा अभी भी अरहन्त के स्वरूप का निर्णय करे तो आत्मा की पहिचान हो और उसके लिए अरहन्त भगवान बिलकुल निकट ही उपस्थित हैं । यहाँ क्षेत्र की अपेक्षा से नहीं, किन्तु भाव की अपेक्षा से बात है। यथार्थ समझ का सम्बन्ध तो भाव के साथ है। यहाँ यह कहा गया है कि अरहन्त कब हैं और कब नहीं? महाविदेहक्षेत्र में अथवा भरतक्षेत्र में चौथे काल में अरहन्त की साक्षात् उपस्थिति के समय भी जिन आत्माओं ने द्रव्य-गुण-पर्याय से अपने ज्ञान में अरहन्त के स्वरूप का यथार्थ निर्णय नहीं किया, उन जीवों के लिए तो उस समय भी अरहन्त की उपस्थिति नहीं के बराबर है और भरतक्षेत्र में पञ्चम काल में साक्षात् अरहन्त की अनुपस्थिति में भी, जिन आत्माओं ने द्रव्य-गुण-पर्याय से अपने ज्ञान में अरहन्त के स्वरूप का निर्णय किया है, उनके लिए अरहन्त भगवान मानों साक्षात् विराजमान हैं। समवसरण में जो भी जीव, अरहन्त के स्वरूप का निर्णय करके आत्मस्वरूप को समझे हैं, उन जीवों के लिए ही अरहन्त Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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