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Ratnakarandaka-śrāvakācāra श्वापि देवोऽपि देवः श्वा जायते धर्मकिल्विषात् । कापि नाम भवेदन्या सम्पद्धर्माच्छरीरिणाम् ॥ २९ ॥
सामान्यार्थ - धर्म और पाप से क्रमशः कुत्ता भी देव और देव भी कुत्ता हो जाता है। यथार्थ में प्राणियों को धर्म से अन्य भी अनिर्वचनीय सम्पदा प्राप्त होती
By following the path of virtue (dharma) a dog becomes a celestial being (deva) and by following the the path of vice (pāpa) a celestial being (deva) becomes a dog. It is true that the men of virtue (dharma) obtain many other ineffable boons.
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