________________
Verse 28
सम्यग्दर्शनसम्पन्नमपि मातङ्गदेहजम् । देवा देवं विदुर्भस्मगूढाङ्गारान्तरौजसम् ॥ २८ ॥
सामान्यार्थ - जिनेन्द्रदेव सम्यग्दर्शन से युक्त चाण्डाल कुल में उत्पन्न हुए जीव को भी भस्म (राख) से आच्छादित अंगारे के भीतरी भाग के समान तेज से युक्त आदरणीय जानते हैं।
The expounders of the Doctrine regard the man, born in the lowest of caste (known as cāņdāla) but possessing right faith, as divine; his divinity is like the fire hidden under ashes in a piece of smouldering charcoal.
........................
49