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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
वरोपलिप्सयाशावान् रागद्वेषमलीमसाः। देवता यदुपासीत देवतामूढमुच्यते ॥ २३ ॥
सामान्यार्थ - वरदान प्राप्त करने की इच्छा से, आशा से युक्त हो, राग-द्वेष से मलिन देवों की जो आराधना की जाती है वह देवमूढ़ता कही जाती है।
To worship deities, themselves stained with attachment and aversion, with the aim to receive boons and for fulfillment of desires, is called the folly relating to deities (devamudhatā).
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