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ACKNOWLEDGMENT
ll that is contained in this book has been excerpted, translated or
adapted from a number of authentic Jaina texts. Due care has been taken to conserve the essence of Ratnakarandaka-śrāvakācāra, the Holy Scripture composed by Ācārya Samantabhadra. Contribution of the following publications in the preparation of the present volume is gratefully acknowledged:
1. पं. पन्नालाल 'वसन्त' साहित्याचार्य (1986), स्वामीसमन्तभद्र-विरचित
रत्नकरण्डकश्रावकाचार - आचार्य प्रभाचन्द्र-रचित संस्कृत टीका तथा हिन्दी रूपान्तर सहित, श्री मुनिसंघ स्वागत समिति, सागर, म.प्र., द्वितीय
संस्करण. 2. ब्रह्मचारी भूरामलजी शास्त्री (आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज) (2014),
मानव धर्म, आगम प्रकाशन, 5373 जैनपुरी, रेवाड़ी (हरियाणा), पञ्चम
संस्करण. 3. पं. जुगलकिशोर मुख्तार (श्रीवीरनिर्वाण संवत् 2451, वि. सं. 1982),
श्रीमन्समन्तभद्रस्वामि-विरचितो रत्नकरण्डकश्रावकाचारः, मणिकचन्द्र दि.
जैन ग्रन्थमाला समिति, हीराबाग, पो. गिरगांव, बम्बई. 4. आर्यिका 105 श्री आदिमती माताजी (?), श्रीसमन्तभद्राचार्य विरचित
रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्री भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद्, सोनागिर, म.प्र. 5. अनुवादिका - आर्यिका 105 श्री सुपार्श्वमती माताजी (1995), महापण्डित
आशाधर सागारधर्मामृतम्, श्री भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद्, तृतीय
संस्करण. 6. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र शास्त्री (2010), आचार्य पूज्यपाद विरचित
सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ, 18 इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नई
दिल्ली-110003, सोलहवाँ संस्करण. 7. पं. मनोहरलाल (वि. सं. 1969), श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः,
श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डल, बम्बई-2.
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