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________________ (१) श्रीगणेशाय नमः ॥॥ श्रीगुरुरामाय नमः ॥ अथ ज्ञानकटारी लिख्यते ॥ दोहा ।। वृत्तिव्याप्ति एकाग्रचित॥ यहीहमारोध्यान ॥ ब्रह्मरूपगुरुरामको ॥ नमस्कारसोइमान ॥ १॥ परमगुरूश्रीरामके ॥ चरणेराखूध्यान ॥ प्रस्तावीमॅकहतहों ॥ ग्रंथकटारीनाम ॥२॥ इंदवछंद ॥ लोहकटारिसबैकोउबांधत ॥ ज्ञानकटारिसुदुर्लभभाई ॥ लोहकटारिजुखाइमरजंत । सोअवतारधरेभवमाई ॥ ज्ञा। नकटारिकोखावतहँसंतब्रह्मस्वरूपअखंडहोजाई ॥ फेरक बूजनमेंनमरेहरिसंगसंतापकनरहाई॥ ३ ॥ मनोहरछंद । ज्ञानकोप्रकाशसोतोहीरामणिरत्नजेसो ॥ ताकोअंधकारकेतपामरठेराइके ॥ ऐसोहीअन्यायकरे ॥ ताहिसेंचोरासिफिरें ॥ बेरबेरकहाकहोंतोहिंसमुजाइके ॥धिकतेरोजीवन मिथ्यानरदेहधरि । मरेक्योंनमुढतूकटारीपेटखाइके ।। हूंतोहरिसंगसुखदुःखहुतेन्यारो खाइ ॥ ज्ञानकोकटारीसतररुगमपाइके ॥ १॥ हीरामणिरत्नसोतोजडहिप्रकाशआपु ॥आपकोनजानेतासुजानोएकदेसीहै। ज्ञानतोस्वयंप्रकाशआपकोबिजानेपनि ।। चिद्धनएकरस
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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