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वि० ८. आत्मवान् स्थितिवर्णन. १७१
की युक्ति ॥ अष्टावक्र वसिष्ठ मुनि, कछुक आपनी उक्ति ॥४२॥ 'टीका:- कबहूं न मन थिस्ता गही" औ "निह संशय मन है चपल” इत्यादि वाक्योंकर गीताउक्त अर्थ कहा। औं "नदि आशा” इत्यादि वाक्योंकर भरथरीका मत कहा । औ “अति कृपाल नहि द्रोह चित" इत्यादि वाक्योंकर एकादशकी युक्ति कही । औ "विषवत विषय बिसार " इत्यादि वचनोंकर अष्टावक्र उक्त अर्थ कहा । औसप्तभूमिका औ प्रपंचका अपवाद प्रतिपादक वचनोंकर वसिष्ठ उक्त अर्थ कहा। इन वचनोंकासंबंध प्रतिपादक कछु इक अपनी उक्ति है ॥ ४२ ॥ (१०४) सोरठा-सत्रहसै छब्बीस, संवत माधव मास शुभ।मो मति जितिक हुतीस, तेतिक बरणी प्रकट करि॥४३॥
टीकाकारकी उक्ति:(१०५ ) दोहा-बालबोधिनी नाम