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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
ईरियावही, तस्सउत्तरी, अनत्थ और लोगस्स यह चारों सूत्र मीलके 'ईरियावही पडिक्कमणा' की विधि कहेते है | कोईभी विधिकी शरुआतमें तथा बीचमें और उसके अंतमें भी यह विधि आती है। सामायिक के प्रतिक्रमण करतें, पारतें, चैत्यवंदनकी शरुआतमें, दुःस्वप्नके निवारण के लिए, आशातना निवारण, गमनागमनकी प्रवृत्ति करनेके बाद फिर शुद्धिके लिए करते है। यह विधिका मुख्य उद्देश ताजा लगे हुए कर्मोको दूर करने का है।
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, Hो मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)
सामायिक करनेकी आज्ञा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !
सामायिक संदिसाहुं ? इच्छं भगवंत, सामायिक लेनेकी आज्ञा दें । आज्ञा मान्य हे |
अनंत पापराशिसे भरे हुए हम सामायिककी लोकोत्तर क्रियामें स्थिर हो शके इसलिए सुगुरुकी आज्ञा लेनेकी है।
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो !
वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, -
मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)