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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
इस सूत्रसे देव और गुरुको वंदन होता है । यह वंदन दो पैर दो हाथ और मस्तक ऐसे पांच अंगोको झुकाके होता है। इसलिए यह सूत्रको प्रणिपात सूत्र भी कहते है ।
चलते चलते हुए जीवोके विराधनाकी माफी इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !
इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, PRAC इच्छामि पडिक्कमिउं (१)
इरियावहियाए, विराहणाए (२)
___गमणागमणे, (३) पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा,
उत्तिंग, पणग, दग, मट्टी, मक्कडा, संताणा, संकमणे (४)
जे मे जीवा विराहिया (५) एंगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया (६) अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया,
___परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ
ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं | (७) हे भगवंत । आपकी इच्छा से आदेश दें कि मैं ईर्यापथिकी (गमनादि व साध्वाचार में हुई विराधना) का प्रतिक्रमण करूं? (यहाँ गुरू कहे ‘पडिक्कमेह') 'इच्छं' अर्थात् मैं आप का आदेश स्वीकार करता हूं | (१) ईर्यापथिकी की विराधना से (मिथ्यादुष्कृत द्वारा) वापस लौटना चाहता हूं | (२)