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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
'प्रथम आवश्यक' रुप सामायिक लेनेकी विधि (स्थापनाजी सन्मुख दायां हाथ उलटा ( स्थापना मुद्रा) रखकर नवकार और पंचिंदियका पाठ कहें।)
श्रावक-श्राविकाओंकी सामायिक लेनेसे पूर्व बाह्य शुद्धि करनी जरुरी है | सर्व प्रथम हाथ, पैर धोकर, स्वच्छ होकर, शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए, बादमें स्वच्छ जगा पर, उंचे आसन पर धार्मिक विषयका, जिसमे नवकार तथा पंचिंदिय सूत्र हो ऐसा पुस्तक रखना, जप करने के लिए घड़ी पासमें रखना, कटासणा, मुहपत्ति और चरवलासहित पूर्व या उत्तर दिशाकी और मुखरखके बाया हाथ स्थापनाचार्यकी और रखकर नवकार और पंचिंदिय पाठ बोलें ।
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार
नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं,
नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं,
नमो लोए सव्व साहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं II (9)
मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त ( रागादि) पापों (या पापकर्मों) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है । (१)
परम मांगलिक रूपमें यह सूत्रका उल्लेख हुआ है। पंचपरमेष्ठि आत्माओंको नमस्कार है । स्थापना के लिए भी यह सूत्र आवश्यक है ।